Tuesday, May 3, 2011

ghazal

करवट करवट बदल रही है कड़ियाँ मेरे सपनो की
पत्थर का बाज़ार सजा है भीड़ लगी है शिशो की

जीवन का बंजारा पण भी दम लेने को नहीं रुका
पयार की ईस धरती में ख़ाली बस्ती पाई इंटो की

अपने सर को थामे राज दुलारे भागे फिरते हैं
अन्ना हजारे पगड़ी खोलने निकले अछे अच्छो की

एक नई दूकान के पहले दिन का हल सुनाओ मैं
नन्गे पण को दर्शाया ओंर की है नुमाइश पर्दों की

सिर्फ नए निर्माण की जिद में पेड़ो का सर कटा दिया
डाल कटी , ओंर घोंसले उजड़े .चिंता किसे परिंदों की ?

भीक मांगने के मौसम में लौट के फिर वो आएंगे
पांच साल की मौत के आगे अभी हैं लाशें जिन्दो की

खड़े रहें स्कूल के बच्चे , बूढ़े , अम्बुलंस , सब कुछ
लाल बत्ती के आगे पीछे लम्बी कतारें चीखो की ....................

दिलशाद नजमी .ranchi
करवट करवट  बदल रही है कड़ियाँ मेरे सपनो की
पत्थर का बाज़ार सजा है भीड़  लगी है शिशो की

जीवन का बंजारा पण भी दम लेने को नहीं रुका
पयार की ईस धरती में ख़ाली बस्ती पाई  इंटो  की
अपने सर को थामे राज दुलारे  भागे फिरते हैं
अन्ना हजारे   पगड़ी  खोलने निकले अछे अच्छो की

एक नई दूकान के पहले दिन का हल सुनाओ मैं
नन्गे पण को दर्शाया ओंर की है नुमाइश पर्दों की

सिर्फ  नए  निर्माण की जिद में पेड़ो का सर कटा दिया
डाल कटी , ओंर घोंसले उजड़े .चिंता किसे परिंदों की ?

भीक मांगने के मौसम में लौट के फिर वो  आएंगे
पांच साल की मौत के आगे अभी हैं लाशें जिन्दो की

खड़े  रहें स्कूल के बच्चे , बूढ़े , अम्बुलंस , सब कुछ
लाल बत्ती के आगे पीछे लम्बी कतारें  चीखो की ....................

दिलशाद  नजमी .ranchi

Thursday, December 9, 2010

hindi geet

نیر  نیّن  کے   پرشن  مرے  گیتوں  کا  کارن بن  جاتے  ہیں
میرے ہردیہ کے اُتّر کیوں اوروں کی الجھن بن جاتے ہیں
نیر نیّن کے پرشن۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
۱۔
مانوتہ کو بندی بنانے والی کیوں زنجیر بنائے
تلواریں ، تِرشول ، گنڈاسے ۔کیوں زہریلے تیر بنائے
بھارت ورش کا ہر کاریگر خود اپنی تقدیربنائے
اس بھٹّی میں کنگن جھومر ، برتن باسن بن جاتے ہیں
نیر نیّن کے پرشن مرے گیتوں کا کارن ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
۲۔
بل کی نِردھاریت ہے سیما ۔ کوئی بھی انجان نہیں ہے
مورکھ سمئے سے بڑا یہاں پر کوئی بھی بلوان نہیں ہے
جھوٹی آن پہ مرنے والے ،تجھکو اتنا گیان نہیں ہے
موجیں پیستی ہیں چٹّانیں ، پتھر کن کن بن جاتے ہیں
نیر نیّن کے پرشن مرے گیتوں کا کارن بن جاتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
۳۔
ایک سمئے ایسا آتا ہے، دکھ اپنا گہرا جاتا ہے
آیو تو بڑھتی ہے ،لیکن سمئے ہمیں ٹہرا جاتا ہے
زہریلی پھنکار سے سارا تن من جب لہرا جاتا ہے
سمبندھوں کے ناگ لپیٹے کیوں ،ہم چندن بن جاتے ہیں
نیرنیّن کے پرشن مرے گیتوں کا کارن بن جاتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔۔۔
۴۔
اپنے آپ سے نظر چرائے ، کیسا جینا جھیل رہے ہیں
سچائی کے رنگ منچ پر ، کون سا ناٹک کھیل رہے ہیں
دوڑ لگانے والے پتھ پر اپنے آپ کو ٹھیل رہے ہیں
ایسے حال میں رہنے والے اپنے دشمن بن جاتے ہیں
نیر نیّن کے پرشن مرے گیتوں کا کارن بن جاتے ہیں ۔۔۔۔۔
۵۔
کیسا دھرم ہے کیسی بھاشا ، ریتی اور سنسکار ہیں کیسے
اُردو سے ہندی بچھڑانے والوں کے بیوپار ہیں کیسے
ُ دشٹوں کو خود پتہ نہیں کہ ایشور کے اوتار ہیں کیسے
راج محل میں اُن کے لئے کیوں اُونچے آسن بن جاتے ہیں
نیر نیّن کے پرشن مرے گیتوں کا کارن بن جاتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔
۶
برگد کی ٹھنڈی چھیّاں سے پگڑی لاٹھی چوکی روٹھی
ننھے کومل ہاٹھ پکڑ کر سیر کراتی اُنگلی چھوٹی
دیواروں میں جنگ چھڑی تو ہر رشتے کی قسمت پھوٹی
دیکھ لے نظمی کتنے چولہے کتنے آنگن بن جاتے ہیں
نیر نیّن کے پرشن مرے گیتوں کا کارن بن جاتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
میرے ہردیہ کے اُتّر کیوں اوروں کی اُلجھن بن جاتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔


دلشادؔ نظمی ۔ ہاتھی خانہ۔ ڈورنڈہ ۔ رانچی ۔ ،جھارکھنڈ ۔ انڈیا

..........................................................................................

नीर नयें के पर्शन मेरे गीतों का कारन बन जाते हैं
   मेरे हिरदे के उत्तर कियों ओउरों की उलझन बन जाते हैं
   नीर नयन .......

१. बल की निर्धारित है सीमा .कोई भी अनजान नहीं है
   मुर्ख समेय से बड़ा यहाँ पर कोई भी बलवान नहीं है
   झूटी आन पे मरने वाले तुझ को इतना गेयान नहीं है
  मौजें पीसती हैं चट्टानें , पत्थर कण कण बन जाते हैं ,
  नीर नयन के .........


२.   मानौता को बंदी बनाने वाली कियों ज़ंजीर बनाये
    तलवारें ,तिरशूल , गंडासे . कियों ज़हरीले तीर बनाये
    भारत वर्ष का हर कारीगर ,खुद अपनी तकदीर बनाये
    इस भट्टी में कंगन झूमर ,बर्तन बासन बन जाते हैं .
   नीर नयन ........
  ३. एक समय ऐसा आता है , दुःख अपना गाहेरा जाता है
     आयु तो बढती  है लेकिन समय हमें ठहेरा जाता है
    विश की भरी फनकार से सारा तन मन जब लहेरा जाता है
    संबंधों के नाग लपेटे कियों हम चन्दन बन जाते हैं
   नीर  नयन .........

  ४. अपने आप से नज़र चुराए कैसा जीना झेल रहे हैं
     सच्चाई के रंग मंच पर कोन सा नाटक खेल रहे हैं
   दोड़ लगाने  वाले पथ पर अपने आप को ठेल रहे हैं
   ऐसे हाल पे रहने वाले अपने दुश्मन बन जाते हैं
   नीर नयन ......

  ५. कैसा धर्म है कैसी भाषा .रीति ओंर संस्कार हैं कैसे
       उर्दू से हिंदी बिच्ड़ाने वालों के बेव्पार हैं कैसे
      दुष्टों को खुद पता नहीं है इश्वर के अवतार हैं कैसे
     राज महल में उन के लिए कियों ऊँचे सिहासन बन जाते हैं
नीर नयन ,,,,,,
  ६..बरगद की ठंडी छायाँ से पगड़ी लाठी चोव्की रूठी
     नन्हे कोमल हाथ पकड़ कर सैर कराती ऊँगली छूटी
     दीवारों में जंग छिड़ी तो हर रिश्ते की किस्मत फूटी
    देख ले नजमी कितने चोहले .कितने आँगन बन जाते हैं
    नीर नयन के पार्ष्ण मेरे गीतों का कारन बन जाते हैं
    मेरे हिरदय के उत्तर कियों औरों की उलझन बन जाते हैं '
    नीर नयन ,,,,,,

दिलशाद नजमी
४२३. हाथी खाना , डोरंडा ,रांची झारखण्ड .
८३४००२.इंडिया





ghazal


dilshadnazmi


yehi bahot hai andhero'n se dushmani ke liye
ke ik chiraagh jala lijiye kisi ke liye

tasl_liyaa'n tou na do aaney wale kal ki hamein ,
hamre paas tou kuch bhi nahi abhi ke liye

bas eak bhool huwi thee shareer lamho'n se
phir imtehaan khad>ha ho gaya sadi ke liye

sabhi sifaat ussi rab_b_e_kaenaat ki hain ,
hai aajzi ki sifat sirf aadmi ke liye

sawal poochti aankho'n ne jab kiya rukhsat
bahot se ashk duwa go they wapsi ke liye

kuch iss tarah huwi taqseem zindagi dilshad
kisi se wada kiya thaa , kati kisi ke liye